दाग़-ए-पेशानी-ए-ज़ाहिद न गया जीते-जी
साथ लाया था ये क्या मुल्क-ए-बक़ा से धब्बा
Jaun Eliya
Anwar Masood
Rahat Indori
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Javed Akhtar
Parveen Shakir
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Allama Iqbal
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हर्बा है आशिक़ों का फ़क़त आह-ए-पेचदार
आदमी को ग़फ़लत-ए-दुनिया नहीं देती नजात
इतनी तो मुझ को सैर-ए-चमन की हवस न थी
यक नाला-ए-आशिक़ाना है याँ
मुल्हिद हूँ अगर मैं तो भला इस से तुम्हें क्या
नख़्ल लाले जा जब ज़मीं से उठा
मार नहिं डालते हैं यूँ उस को
क़िस्सा-ए-मजनूँ पसंद-ए-ख़ातिर जानाना है
सुम्बुल को परेशान किया बाद-ए-सबा ने
हर-चंद बहार ओ बाग़ है ये
दौलत-ए-फ़क़्र-ओ-फ़ना से हैं तवंगर हम लोग
इस में आलम की सब आबादी ओ वीराना है