दाग़-ए-दिल शब को जो बनता है चराग़-ए-दहलीज़
रौशनी घर में मिरे रहती है अंदर बाहर
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दिल दुखा ही करे है सीने में
क्या जानिए किस किस को मैं याँ दी है अज़िय्यत
हम भी हैं तिरे हुस्न के हैरान इधर देख
दिल उलझता रहा ता-सुब्ह हमारा शब को
गए हैं यार अपने अपने घर दालान ख़ाली है
दिल डूब गया टूट गया सब्र का लंगर
कशिश ने इश्क़ की क्या काम कुछ किया थोड़ा
लिया मैं बोसा ब-ज़ोर उस सिपाही-ज़ादे का
काबा ओ दैर में ढूँडे जो कहीं ले के चराग़
दिल और सियह हो गए माह-ए-रमज़ाँ में
मुवाफ़क़त हो जो ताले की उस की मज्लिस में
अब शीशा-ए-साअत की तरह ख़ुश्की के बाइस