लिया मैं बोसा ब-ज़ोर उस सिपाही-ज़ादे का
अज़ीज़ो अब भी मिरी कुछ दिलावरी देखी
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ने हाथ मिरा हाथ है ने जेब मिरी जेब
और सरगर्म किया तेरी कशिश ने मुझ को
क्या दख़्ल किसी से मरज़-ए-इश्क़ शिफ़ा हो
नज़्र को किस गुल-ए-नौ-रस्ता के दामन में नसीम
मैं सवा शेर के कुछ और समझता ही नहीं
इतना गया हूँ दूर मैं ख़ुद से कि दम-ब-दम
जो दम हुक़्क़े का दूँ बोले कि ''मैं हुक़्क़ा नहीं पीता''
इस इमारत पर न कर मुनइम ग़ुरूर
चीन-ए-पेशानी न दिखलाओ मैं हूँ नाज़ुक-मिज़ाज
जाते जाते राह में उस ने मुँह से उठाया जूँही पर्दा
झुर्रियाँ क्यूँ न पड़ें उम्र-ए-फ़ुज़ूँ में मुँह पर
ऐसे डरे हैं किस की निगाह-ए-ग़ज़ब से हम