ले क़ैस ख़बर महमिल-ए-लैला तो न होवे
इस दश्त से आती है कुछ आवाज़-ए-दरा गर्म
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शब-ए-हिज्र का माजरा कोएले से
कुछ टूटे फटे सीने को साथ अपने सफ़र में
लोग कहते हैं मोहब्बत में असर होता है
मक़्तल-ए-यार में टुक ले तो चलो ऐ यारो
'मुसहफ़ी' मैं हूँ अब और जामा-ए-उर्यानी है
फ़लक की ख़बर कब है ना-शाइरों को
जल्वा-गर उस का सरापा है बदन आइने में
शब जो होली की है मिलने को तिरे मुखड़े से जान
मौसम-ए-होली है दिन आए हैं रंग और राग के
जिस हुस्न के जल्वे हैं आरिफ़ की निगाहों में
अभी आग़ाज़-ए-मोहब्बत है कुछ इस का अंजाम
शब शौक़ ले गया था हमें उस के घर तलक