लोग कहते हैं मोहब्बत में असर होता है
कौन से शहर में होता है किधर होता है
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
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Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
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बंद भी आँखों को ज़री कीजिए
गर समझते वो कभी मअनी-ए-मत्न-ए-क़ुरआँ
शोख़ी-ए-हुस्न के नज़्ज़ारे की ताक़त है कहाँ
मरते मरते इसी बुत का मुझे कलमा पढ़ना
रात करता था वो इक मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार से बहस
उस के कूचे में सदा मुझ को नज़र आता है
आना है यूँ मुहाल तो इक शब ब-ख़्वाब आ
ऐ इश्क़ जहाँ है यार मेरा
ना-अहल हम हैं वर्ना सरापा में यार के
तिरे मुँह छुपाते ही फिर मुझे ख़बर अपनी कुछ न ज़री रही
दिल ही दिल में याँ मोहब्बत अपना घर करती रही
कह दो मजनूँ से करे अपनी सवारी तय्यार