ले लिया प्यार से अक्स अपने का झुक कर बोसा
उस ने देखा जो वो पाँ-ख़ुर्दा दहन आइने में
Javed Akhtar
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जाने दे टुक चमन में मुझे ऐ सबा सरक
पाँव में क़ैस के ज़ंजीर भली लगती है
बाग़ था उस में आशियाँ भी था
जाँ-बर हो किस तरह तप-ए-सौदा से 'मुसहफ़ी'
तकलीफ़ न दे हम को तो गुल-गश्त-ए-चमन की
शब में वाँ जाऊँ तो जाऊँ किस तरह
कहीं देखा है इस हैअत का माशूक़
सीने के ज़ोर से भी मू भर नहीं उकसती
सुख़न में कामरानी कर रहा हूँ
बुलबुलो बाग़बाँ को क्यूँ छेड़ा
मुश्ताक़ ही दिल बरसों उस ग़ुंचा-दहन का था
चश्म ने की गौहर-अफ़्शानी सरीह