झुर्रियाँ क्यूँ न पड़ें उम्र-ए-फ़ुज़ूँ में मुँह पर
तन पे जब लाए शिकन पीर-ए-कुहन-साल की खाल
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Habib Jalib
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(307) Peoples Rate This
करता हूँ सवाल जिस के दर पर
कब लग सके जफ़ा को उस की वफ़ा-ए-आलम
उट्ठा गया फ़लक पे गिरा ख़ाक में मिला
मैं ने किस चश्म के अफ़्साने को आग़ाज़ किया
नर्मी-ए-बालिश-ए-पर हम को नहीं भाती है
शायद कि किसी और से था वस्ल का वादा
जब घर से वो बाद-ए-माह निकले
वो आहू-ए-रमीदा मिल जाए तीरा-शब गर
किस राह गया लैला का महमिल नहीं मालूम
उस रश्क-ए-मह की याद दिलाती है चाँदनी
बर्क़-ए-रुख़्सार-ए-यार फिर चमकी
पीछे फिर फिर देखता जाता हूँ और भागूँ हूँ मैं