जी जिस को चाहता था उसी से मिला दिया
दिल की कशिश ने की ये करामात राह में
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दिन को है सहरा-नवर्दी से हमें काम ऐ रफ़ीक़
बारा-वफ़ातें बीसवीं झड़ियाँ हैं सौ जगह
आज ख़ूँ हो के टपक पड़ने के नज़दीक है दिल
ये ज़माना वो है जिस में हैं बुज़ुर्ग ओ ख़ुर्द जितने
वो आप कर रही है मुदाम उस की जुस्तुजू
किस राह गया लैला का महमिल नहीं मालूम
मैं तुझ को याद करता हूँ इलाही
पलकें नहीं छोड़तीं कि इक दम
हैं यादगार-ए-आलम-ए-फ़ानी ये दिनों चीज़
आधी रात आए तिरे पास ये किस का है जिगर
हम-सफ़ीरों से सबा कहियो कि तुम में भी कभी
क्या काम किया तुम ने थी ये भी अदा कोई