आधी रात आए तिरे पास ये किस का है जिगर
चौंक मत इतना कि ऐ होश-रुबा हम ही हैं
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दिल के नगर में चार तरफ़ जब ग़म की दुहाई बैठ गई
क़नाअत उस की निकलती है वाज़्गूनी में
शब में वाँ जाऊँ तो जाऊँ किस तरह
जमुना में कल नहा कर जब उस ने बाल बाँधे
अमआ की परी माने-ए-पर्वाज़ है जिस तरह
जिस्म-ए-ख़ाकी को बनाया लाग़री ने ऐन-रूह
तड़ावे के लिए है ख़्वान पोश महर-ओ-मह नादाँ
'मीर' क्या चीज़ है 'सौदा' क्या है
कुछ अपनी जो हुर्मत तुझे मंज़ूर हो ऐ शैख़
सज्दा करता हूँ मैं मेहराब समझ कर उस को
हसरत पे उस मुसाफ़िर-ए-बे-कस की रोइए
दर तलक आ के टुक आवाज़ सुना जाओ जी