वो आप कर रही है मुदाम उस की जुस्तुजू
शोले को अपना गो नहीं देती सुराग़ शम्अ
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मेरे और यार के पर्दा तो नहीं कुछ लेकिन
दारुश्शफ़ा-ए-इश्क़ में ले जा के हम को इश्क़
ज़ुल्फ़ अगर दिल को फँसा रखती है
बातों ने उस की हम को ख़ामोश कर दिया है
मुश्ताक़ ही दिल बरसों उस ग़ुंचा-दहन का था
ढूँढता है मुझे वो तेग़ लिए और मैं वहीं
बातें कई ज़बानी मैं ने कही हैं उस से
है रोज़-ए-पंज-शम्बा तू फ़ातिहा दिला दे
नसीम-ए-सुब्ह-ए-चमन से इधर नहीं आती
निस्बत फिर उस से क्या मह-ए-दाग़ी को दीजिए
तू गोश-ए-दिल से सुने उस को गर बत-ए-बे-मेहर
बाग़बाँ काटियो मत मौसम-ए-गुल में उस को