वो जो आशिक़ हैं अपने हाथों से
फेंक देते हैं काट कर सर को
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Anwar Masood
Allama Iqbal
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(345) Peoples Rate This
या-रब मिरी उस बुत से मुलाक़ात कहीं हो
मरते मरते इसी बुत का मुझे कलमा पढ़ना
कूचा-ए-यार में रहने से नहीं और हुसूल
तब जानूँ मैं कि दीन-ए-मोहम्मद के हैं हरीफ़
ज़ालिम ख़ुदा के वास्ते बैठा तो रह ज़रा
ऐ इश्क़ तेरी अब के वो तासीर क्या हुई
कभी वफ़ाएँ कभी बेवफ़ाइयाँ देखीं
उस गली में जो हम को लाए क़दम
मैं तो समझूँगा जो समझाते हो मुझ को हर घड़ी
हम दिल को लिए बर-सर-ए-बाज़ार खड़े हैं
कहीं मग़्ज़ उस के मैं सुब्ह-दम तिरी बू-ए-ज़ुल्फ़-ए-रसा गई
जलता है जिगर तो चश्म नम है