मग़रिब में उस को जंग है क्या जाने किस के साथ
सूरज चला है बाँध के तेग़ ओ सिपर कहाँ
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ऐ शब हिज्र कहीं तेरी सहर है कि नहीं
होती नहीं है दिल को तसल्ली किसी तरह
बिकते हैं शहर में गुल-ए-बे-ख़ार हर तरफ़
मु-ए-जुज़ 'मीर' जो थे फ़न के उस्ताद
मैं तरह डालूँ अगर सोच कर कहीं घर की
अव्वल तो ये धज और ये रफ़्तार ग़ज़ब है
सामने आँखों के हर दम तिरी तिमसाल है आज
कौन कहता है कि फिर ख़ाक से उठते हैं शहीद
निस्बत फिर उस से क्या मह-ए-दाग़ी को दीजिए
रात पर्दे से ज़रा मुँह जो किसू का निकला
क्या तअज्जुब है अगर फिर के हो अहया मेरा
चाहता हूँ उस को मैं वो चाहता मुझ को नहीं