ऐ बहार तुझ को इस की क्या ख़बर
ऐ निगार तुझ को क्या पता
दिल के फ़ासले कभी न मिट सके
इंतिहा-ए-क़ुर्ब से भी क्या
सब की अपनी अपनी शख़्सियत अलग
सब का अपना अपना ज़ाविया
वो भी फूल थे जो हार बन गए
वो भी फूल था जो जल गया
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Wasi Shah
Javed Akhtar
Gulzar
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(343) Peoples Rate This
बुज़ुर्गो, नासेहो, फ़रमाँ-रवाओ
जिस दिन से अपना तर्ज़-ए-फ़क़ीराना छुट गया
आदमी
जुदाई
तरी तलाश में हर रहनुमा से बातें कीं
यूँ तो वो हर किसी से मिलती है
चारागरो
कराहते हुए दिल
यूँ तो अक्सर ख़याल आता था
इंतिहा
एक शाम
उजाला