जिस दिन से अपना तर्ज़-ए-फ़क़ीराना छुट गया
शाही तो मिल गई दिल-ए-शाहाना छुट गया
Rahat Indori
Parveen Shakir
Gulzar
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Jaun Eliya
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(456) Peoples Rate This
हुई ईजाद नई तर्ज़-ए-ख़ुशामद कि नहीं
फ़साद-ए-ज़ात
सहर जीतेगी या शाम-ए-ग़रीबाँ देखते रहना
यूँ तो अक्सर ख़याल आता था
इश्क़ इन ज़ालिमों की दुनिया में
अब भी हुदूद-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ से गुज़र गया
ग़म-ए-दौराँ ने भी सीखे ग़म-ए-जानाँ के चलन
मैं किस के हाथ पे अपना लहू तलाश करूँ
चारागरो
तन्हा
बैठा हूँ सियह-बख़्त ओ मुकद्दर इसी घर में
मिरे ज़ख़्मी होंट