इश्क़ इन ज़ालिमों की दुनिया में
कितनी मज़लूम ज़ात है ऐ दिल
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दूर की आवाज़
उजाला
अल्लाह अल्लाह ये लर्ज़िश-ए-मिज़्गाँ
सिर्फ़ कह दूँ कि नाव डूब गई
माह-ओ-साल
तिरी हँसी
ख़ुद अपने शब-ओ-रोज़ गुज़र जाएँगे लेकिन
जुदाई
कोई साग़र में देखता है फ़रार
इक मौज-ए-ख़ून-ए-ख़ल्क़ थी किस की जबीं पे थी
रोकता है ग़म-ए-इज़हार से पिंदार मुझे
सीने में ख़िज़ाँ आँखों में बरसात रही है