ग़म-ए-दौराँ ने भी सीखे ग़म-ए-जानाँ के चलन
वही सोची हुई चालें वही बे-साख़्ता-पन
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Rahat Indori
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Wasi Shah
Gulzar
Anwar Masood
Allama Iqbal
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गुनाहगार
उस को किरनों ने दी है ताबानी
लोगों की मलामत भी है ख़ुद दर्द-सरी भी
हार जीत
मुसाफ़िर
वक़्त के साथ लोग कहते थे
वफ़ा कैसी?
इस तरह होश गँवाना भी कोई बात नहीं
तिरी हँसी
हर तरफ़ इम्बिसात है ऐ दिल
''ज़बान-ए-ग़ैर से क्या शरह-ए-आरज़ू करते''
कराहते हुए दिल