इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओ
मिरे घर के रास्ते में कोई कहकशाँ नहीं है
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याद
सियाह लहू
क्या ख़बर आज तेरी आँखों में
तिरी हँसी
दूर की आवाज़
मुद्दतों कोर-निगाही दिल की
ग़म-ए-दौराँ ने भी सीखे ग़म-ए-जानाँ के चलन
रूह की मौत
मिरी रूह की हक़ीक़त मिरे आँसुओं से पूछो
जिस दिन से अपना तर्ज़-ए-फ़क़ीराना छुट गया
फ़नकार ख़ुद न थी मिरे फ़न की शरीक थी
चले तो कट ही जाएगा सफ़र आहिस्ता आहिस्ता