साँस लेता हूँ कि पत-झड़ सी लगी है मुझ में
वक़्त से टूट रहे हैं मिरे बँधन जैसे
Wasi Shah
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Rahat Indori
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(543) Peoples Rate This
रात गए यूँ दिल को जाने सर्द हवाएँ आती हैं
मुंतज़िर रहना भी क्या चाहत का ख़म्याज़ा नहीं
वो रोकता है मुझे शहर में निकलने से
आग से सैराब दश्त-ए-ज़िंदगानी हो गया
चाप आए कि मुलाक़ात हो आवाज़े से
कब निशाँ मेरा किसी को शब-ए-हस्ती में मिला
कर्बला
हम करें बात दलीलों से तो रद्द होती है
जभी तो उम्र से अपनी ज़ियादा लगता हूँ
वा'दा मुआवज़े का न करता अगर ख़ुदा
मेरी सोच मुझे किस रुतबे पर ले आई
तेरी झलक निगाह के हर ज़ाविए में है