कई दिन से कोई हिचकी नहीं है
वो हम को याद अब करती नहीं है
सिवा तेरे जिधर से कोई आए
हमारे दिल में वो खिड़की नहीं है
मैं जिस दरिया में काँटा डालता था
सुना है अब वहाँ मछली नहीं है
थीं जितनी सब कुएँ में फेंक आए
हमारे पास अब नेकी नहीं है
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क्या ख़बर किस को कब कहाँ दे दे
हम जो दीवार पे तस्वीर बनाने लग जाएँ
सर उठाने की तो हिम्मत नहीं करने वाले
छू सुकूँ तुझ को ये औक़ात कभी तो होगी
ग़ौर से मुझ को देखता है क्या
तुम्हारे जाने का हम को मलाल थोड़ी है
इन से उम्मीद न रख हैं ये सियासत वाले