हमारी राह से पत्थर उठा कर फेंक मत देना
लगी हैं ठोकरें तब जा के चलना सीख पाए हैं
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Gulzar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Wasi Shah
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(554) Peoples Rate This
हमारी ज़िंदगी जैसे कोई शब भर का जल्सा है
अब उन की ख़्वाब-गाहों में कोई आवाज़ मत करना
मिरे ख़याल की पर्वाज़ बस तुम्हीं तक थी
यूँ नहीं था कि तीरगी कम थी
इस शहर में ख़्वाबों की इमारत नहीं बनती
सहरा में जो मिला था मुझे इतना याद है
घर किसी का भी हो जलता नहीं देखा जाता
मरने को मर भी जाऊँ कोई मसअला नहीं
अब तक तो इस सफ़र में फ़क़त तिश्नगी मिली
हम पे वो मेहरबान कुछ कम है
न जाने कब की दबी तल्ख़ियाँ निकल आईं