हमारी ज़िंदगी जैसे कोई शब भर का जल्सा है
सहर होते ही ख़्वाबों के घरौंदे टूट जाते हैं
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Gulzar
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(424) Peoples Rate This
इतनी मुश्किल में कभी पहले तो जाँ आई न थी
उसे गुमाँ है कि मेरी उड़ान कुछ कम है
मज़हबी चिंगारियों से बस्तियाँ जल जाएँगी
तारीकियाँ क़ुबूल थीं मुझ को तमाम उम्र
ये इश्क़ के ख़ुतूत भी कितने अजीब हैं
सर-बरहना भरी बरसात में घर से निकले
मिरे ख़याल की पर्वाज़ बस तुम्हीं तक थी
सहरा में जो मिला था मुझे इतना याद है
हमें दुनिया फ़क़त काग़ज़ का इक टुकड़ा समझती है
हमारी राह से पत्थर उठा कर फेंक मत देना
अब तक तो इस सफ़र में फ़क़त तिश्नगी मिली
अब कहाँ तक पत्थरों की बंदगी करता फिरूँ