कहानी
इक दिन उस ने मेरे दिल के दरवाज़े पर दस्तक दी थी
और मिरे ख़्वाबों की दुनिया में अरमानों का जश्न हुआ था
कलियाँ महकीं फूल खिले थे
हर-सू ख़ुशबू फैल गई थी
उस को देखा देख के सोचा
उस जैसा इस दुनिया में शायद कोई और न होगा
ऐसा पैकर ऐसा चेहरा कब देखा था मैं ने
मरमर की इक मूरत को चलते-फिरते देख लिया था
कितने समुंदर पोशीदा थे आँखों की गहराई में
कितनी बहारें खेल रही थीं उस के हसीं रुख़्सारों पर
इक दिन मैं ने
उस के दिल के दरवाज़े पर दस्तक दी थी
प्यार हुआ था
कलियाँ चटकीं फूल खिले थे
हर-सू ख़ुशबू फैल गई थी
इक दिन उस के दरवाज़े पर शहनाई बजी थी
अंजान-नगर का इक शहज़ादा ज़रतार क़बा में आया था
उस को ले कर दूर गया अंजान-नगर का शहज़ादा
इक दिन मैं ने उस को देखा
वीरानी के मंज़र थे अब ख़ुश्क समुंदर आँखों में
और ख़िज़ाँ का रक़्स था उस के सूखे हुए रुख़्सारों पर
लोगों से अहवाल सुना
अंजान-नगर का शहज़ादा
उस को तन्हा छोड़ गया था!
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