दिल की शामत आई जा कर फँस गया
यार के गेसू-ए-पुर-ख़म क्या करें
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बेताब हैं किसी की निगाहें नक़ाब में
तसल्लियाँ भी नहीं उन की छेड़ से ख़ाली
दिखाए मोजज़े गर वो बुत-ए-अय्यार चुटकी में
ग़ैर के घर हैं वो मेहमान बड़ी मुश्किल है
ये चोटी किस लिए पीछे पड़ी है
जब किसी को ख़फ़ा करे कोई
दे दें अभी करे जो कोई ख़ूब-रू पसंद
जहाँ में अभी यूँ तो क्या क्या न होगा
हम यार की ग़ैरों पे नज़र देख रहे हैं
तुम्हारी तेग़ से आँखें लगी हैं मरने वालों की
यूँही गर अदू की ग़ुलामी करेंगे
क्या ख़ाक कहूँ मतलब-ए-दिलदार के आगे