तसल्लियाँ भी नहीं उन की छेड़ से ख़ाली
रुला के छोड़ते हैं वो हँसा हँसा के मुझे
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Allama Iqbal
Rahat Indori
Gulzar
Jaun Eliya
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(401) Peoples Rate This
ग़ैर के घर बन के डाली जाएगी
होंगे दिल-ओ-जिगर में निशाँ देख लीजिए
दिल की शामत आई जा कर फँस गया
हम यार की ग़ैरों पे नज़र देख रहे हैं
आप वो सब की जान लेते हैं
न मानी उस ने एक भी दिल की
जो पूछा सब्र-ए-हिज्र-ए-ग़ैर में क्या हो नहीं सकता
सीधा सच्चा तुम्हें ऐ जान-ए-जहाँ जाने कौन
शब-ए-फ़ुर्क़त क़ज़ा नहीं आती
चराग़-ए-शाम-ए-ग़रीबी था में ज़माने में
जौर-ए-पैहम की इंतिहा भी है