तुम्हारी तेग़ से आँखें लगी हैं मरने वालों की
ये लैला कब मिरी जाँ पर्दा-ए-महमिल से निकलेगी
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जब किसी को ख़फ़ा करे कोई
अपनी महफ़िल में मुझे देख के कहता है वो बुत
जौर-ए-पैहम की इंतिहा भी है
हिज्र में जब ख़याल-ए-यार आया
ज़िक्र-ए-ईफ़ा कुछ नहीं वादा ही वादा हम से है
जिधर देख तुम्हारी बज़्म में अग़्यार बैठे हैं
उन के पैकान पे पैकान चले आते हैं
दिखाए मोजज़े गर वो बुत-ए-अय्यार चुटकी में
ज़िक्र-ए-दुश्मन है नागवार किसे
हम यार की ग़ैरों पे नज़र देख रहे हैं
क्या ख़ाक कहूँ मतलब-ए-दिलदार के आगे
सीधा सच्चा तुम्हें ऐ जान-ए-जहाँ जाने कौन