हवा गुम-सुम खड़ी है रास्ते में
मुसाफ़िर सोच में डूबा हुआ है
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जब पुकारा किसी मुसाफ़िर ने
रात भर ख़्वाब देखने वाले
एक ज़ब्त-शुदा पोस्टर
गुम्बदों के दरमियाँ
अराबची सो गया है
फ़लसफ़े सारे किताबों में उलझ कर रह गए
तारीख़ टस्वे बहाएगी
बे-ख़्वाबी की आकास बेल पर खिली ख़्वाहिश
तुम ने उसे कहाँ देखा है
मुझे इक ख़्वाब लिखना है
अभी वो आँख भी सोई नहीं है