जब पुकारा किसी मुसाफ़िर ने
रास्ते खाईयों में चीख़ उठे
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ख़ला के दरमियानी मौसमों में
मर्ग-पेच
अराबची सो गया है
पानी में गुम ख़्वाब
तुम ने उसे कहाँ देखा है
अपने क़ातिल के लिए एक नज़्म
वो दिन तेरी याद का दिन था
गुम्बदों के दरमियाँ
दर्द के पीले गुलाबों की थकन बाक़ी रही
दीवार-ए-क़हक़हा
एक साहिली दिन
शब की पहनाइयों में चीख़ उठे