अदावतें थीं, तग़ाफ़ुल था, रंजिशें थीं बहुत
बिछड़ने वाले में सब कुछ था, बेवफ़ाई न थी
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
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मरहम-ए-वक़्त न एजाज़-ए-मसीहाई है
मिलने की तरह मुझ से वो पल भर नहीं मिलता
आज की रात उजाले मिरे हम-साया हैं
मिस्ल-ए-सहरा है रिफ़ाक़त का चमन भी अब के
सुकूत-ए-शाम से घबरा न जाए आख़िर तू
मैं इक शजर की तरह रह-गुज़र में ठहरा हूँ
सबा का नर्म सा झोंका भी ताज़ियाना हुआ
हम-रही की बात मत कर इम्तिहाँ हो जाएगा
तुझे क्या ख़बर मिरे बे-ख़बर मिरा सिलसिला कोई और है
ये हवा सारे चराग़ों को उड़ा ले जाएगी