मैं हूँ रात का एक बजा है
ख़ाली रस्ता बोल रहा है
Allama Iqbal
Wasi Shah
Javed Akhtar
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Rahat Indori
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(467) Peoples Rate This
न अब वो यादों का चढ़ता दरिया न फ़ुर्सतों की उदास बरखा
इन सहमे हुए शहरों की फ़ज़ा कुछ कहती है
ओ मेरे मसरूफ़ ख़ुदा
जुर्म-ए-उम्मीद की सज़ा ही दे
रह-नवर्द-ए-बयाबान-ए-ग़म सब्र कर सब्र कर
रह-ए-जुनूँ में ख़ुदा का हवाला क्या करता
कुछ यादगार-ए-शहर-ए-सितमगर ही ले चलें
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए
दिल में इक लहर सी उठी है अभी
इस शहर-ए-बे-चराग़ में जाएगी तू कहाँ
तुझ बिन सारी उम्र गुज़ारी
आँच आती है तिरे जिस्म की उर्यानी से