तुझ बिन सारी उम्र गुज़ारी
लोग कहेंगे तू मेरा था
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शहर सुनसान है किधर जाएँ
मैं ने जब लिखना सीखा था
दिल धड़कने का सबब याद आया
कौन अच्छा है इस ज़माने में
नई दुनिया के हंगामों में 'नासिर'
धूप थी और बादल छाया था
जुर्म-ए-उम्मीद की सज़ा ही दे
मुसलसल बेकली दिल को रही है
ग़म-फ़ुर्सती-ए-ख़्वाब-ए-तरब याद रहेगी
ज़बाँ सुख़न को सुख़न बाँकपन को तरसेगा
हाल-ए-दिल हम भी सुनाते लेकिन