ज़बाँ सुख़न को सुख़न बाँकपन को तरसेगा

ज़बाँ सुख़न को सुख़न बाँकपन को तरसेगा

सुख़न-कदा मिरी तर्ज़-ए-सुख़न को तरसेगा

नए पियाले सही तेरे दौर में साक़ी

ये दौर मेरी शराब-ए-कुहन को तरसेगा

मुझे तो ख़ैर वतन छोड़ कर अमाँ न मिली

वतन भी मुझ से ग़रीब-उल-वतन को तरसेगा

इन्ही के दम से फ़रोज़ाँ हैं मिल्लतों के चराग़

ज़माना सुहबत-ए-अरबाब-ए-फ़न को तरसेगा

बदल सको तो बदल दो ये बाग़बाँ वर्ना

ये बाग़ साया-ए-सर्व-ओ-समन को तरसेगा

हवा-ए-ज़ुल्म यही है तो देखना इक दिन

ज़मीन पानी को सूरज किरन को तरसेगा

(376) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Nasir Kazmi. is written by Nasir Kazmi. Complete Poem in Hindi by Nasir Kazmi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.