शोर बरपा है ख़ाना-ए-दिल में
कोई दीवार सी गिरी है अभी
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ये सितम और कि हम फूल कहें ख़ारों को
रोते रोते कौन हँसा था
दाएम आबाद रहेगी दुनिया
हँसता पानी रोता पानी
तिरे फ़िराक़ की रातें कभी न भूलेंगी
मैं तो बीते दिनों की खोज में हूँ
रह-नवर्द-ए-बयाबान-ए-ग़म सब्र कर सब्र कर
कम-फ़ुर्सती-ए-ख़्वाब-ए-तरब याद रहेगी
दिन भर तो मैं दुनिया के धंदों में खोया रहा
जुर्म-ए-उम्मीद की सज़ा ही दे
गली गली आबाद थी जिन से कहाँ गए वो लोग
वो दिल-नवाज़ है लेकिन नज़र-शनास नहीं