जुर्म-ए-उम्मीद की सज़ा ही दे
मेरे हक़ में भी कुछ सुना ही दे
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Allama Iqbal
Rahat Indori
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Gulzar
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(384) Peoples Rate This
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए
मैं ने जब लिखना सीखा था
कभी ज़ुल्फ़ों की घटा ने घेरा
सर में जब इश्क़ का सौदा न रहा
तुझ बिन घर कितना सूना था
ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूद
सो गए लोग उस हवेली के
तिरे मिलने को बेकल हो गए हैं
तिरे आने का धोका सा रहा है
कौन अच्छा है इस ज़माने में
ये सितम और कि हम फूल कहें ख़ारों को
रात कितनी गुज़र गई लेकिन