कभी ज़ुल्फ़ों की घटा ने घेरा
कभी आँखों की चमक याद आई
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गिरफ़्ता-दिल हैं बहुत आज तेरे दीवाने
शबनम-आलूद पलक याद आई
ग़म-फ़ुर्सती-ए-ख़्वाब-ए-तरब याद रहेगी
वो रात का बे-नवा मुसाफ़िर वो तेरा शाइर वो तेरा 'नासिर'
इस से पहले कि बिछड़ जाएँ हम
दाएम आबाद रहेगी दुनिया
ग़म है या ख़ुशी है तू
आज देखा है तुझ को देर के बअ'द
पत्थर का वो शहर भी क्या था
याद आई वो पहली बारिश
फ़िक्र-ए-तामीर-ए-आशियाँ भी है
ये शब ये ख़याल-ओ-ख़्वाब तेरे