याद आई वो पहली बारिश
जब तुझे एक नज़र देखा था
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रह-ए-जुनूँ में ख़ुदा का हवाला क्या करता
तिरे आने का धोका सा रहा है
नए कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ और बाल बनाऊँ किस के लिए
ये सुब्ह की सफ़ेदियाँ ये दोपहर की ज़र्दियाँ
सारा दिन तपते सूरज की गर्मी में जलते रहे
आरज़ू है कि तू यहाँ आए
जुर्म-ए-उम्मीद की सज़ा ही दे
शबनम-आलूद पलक याद आई
सर में जब इश्क़ का सौदा न रहा
जब ज़रा तेज़ हवा होती है
आज तो बे-सबब उदास है जी
कम-फ़ुर्सती-ए-ख़्वाब-ए-तरब याद रहेगी