नए कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ और बाल बनाऊँ किस के लिए
वो शख़्स तो शहर ही छोड़ गया मैं बाहर जाऊँ किस के लिए
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Habib Jalib
Anwar Masood
Gulzar
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(623) Peoples Rate This
मैं सोते सोते कई बार चौंक चौंक पड़ा
आँच आती है तिरे जिस्म की उर्यानी से
हमारे घर की दीवारों पे 'नासिर'
तू है या तेरा साया है
मैं इस जानिब तू उस जानिब
मैं हूँ रात का एक बजा है
ये सुब्ह की सफ़ेदियाँ ये दोपहर की ज़र्दियाँ
नई दुनिया के हंगामों में 'नासिर'
सो गए लोग उस हवेली के
हँसता पानी रोता पानी
हासिल-ए-इश्क़ तिरा हुस्न-ए-पशीमाँ ही सही
जिन्हें हम देख कर जीते थे 'नासिर'