हमारे घर की दीवारों पे 'नासिर'
उदासी बाल खोले सो रही है
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मुझे ये डर है तिरी आरज़ू न मिट जाए
इस शहर-ए-बे-चराग़ में जाएगी तू कहाँ
दिल धड़कने का सबब याद आया
अपनी धुन में रहता हूँ
मैं इस जानिब तू उस जानिब
आज तो बे-सबब उदास है जी
यूँ तो हर शख़्स अकेला है भरी दुनिया में
ज़बाँ सुख़न को सुख़न बाँकपन को तरसेगा
तिरे आने का धोका सा रहा है
पहाड़ों से चली फिर कोई आँधी
मुझ को और कहीं जाना था
ग़म है या ख़ुशी है तू