मुझे ये डर है तिरी आरज़ू न मिट जाए
बहुत दिनों से तबीअत मिरी उदास नहीं
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Habib Jalib
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भरी दुनिया में जी नहीं लगता
तेरी मजबूरियाँ दुरुस्त मगर
नींद आती नहीं तो सुबह तलक
ये हक़ीक़त है कि अहबाब को हम
ज़बाँ सुख़न को सुख़न बाँकपन को तरसेगा
उस ने मंज़िल पे ला के छोड़ दिया
आज देखा है तुझ को देर के बअ'द
जब रात गए तिरी याद आई सौ तरह से जी को बहलाया
उम्र भर की नवा-गरी का सिला
शहर सुनसान है किधर जाएँ
नए कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ और बाल बनाऊँ किस के लिए
वो दिल-नवाज़ है लेकिन नज़र-शनास नहीं