उस ने मंज़िल पे ला के छोड़ दिया
उम्र भर जिस का रास्ता देखा
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इन सहमे हुए शहरों की फ़ज़ा कुछ कहती है
कुछ यादगार-ए-शहर-ए-सितमगर ही ले चलें
दिल में इक लहर सी उठी है अभी
ये शब ये ख़याल-ओ-ख़्वाब तेरे
मैं हूँ रात का एक बजा है
मैं इस जानिब तू उस जानिब
तिरे फ़िराक़ की रातें कभी न भूलेंगी
इस से पहले कि बिछड़ जाएँ हम
गली गली मिरी याद बिछी है प्यारे रस्ता देख के चल
दौर-ए-फ़लक जब दोहराता है मौसम-ए-गुल की रातों को
ख़्वाब में रात हम ने क्या देखा
रह-ए-जुनूँ में ख़ुदा का हवाला क्या करता