मैं इस जानिब तू उस जानिब
बीच में पत्थर का दरिया था
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'नासिर' क्या कहता फिरता है कुछ न सुनो तो बेहतर है
दिल तो मेरा उदास है 'नासिर'
वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का
उम्र भर की नवा-गरी का सिला
मैं सोते सोते कई बार चौंक चौंक पड़ा
दुख की लहर ने छेड़ा होगा
मैं हूँ रात का एक बजा है
दाएम आबाद रहेगी दुनिया
मैं जब तेरे घर पहुँचा था
वो दिल-नवाज़ है लेकिन नज़र-शनास नहीं
बुलाऊँगा न मिलूँगा न ख़त लिखूँगा तुझे
तन्हाइयाँ तुम्हारा पता पूछती रहीं