तन्हाइयाँ तुम्हारा पता पूछती रहीं
शब-भर तुम्हारी याद ने सोने नहीं दिया
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मैं हूँ रात का एक बजा है
तू है या तेरा साया है
फ़िक्र-ए-तामीर-ए-आशियाँ भी है
कभी ज़ुल्फ़ों की घटा ने घेरा
धूप थी और बादल छाया था
इस से पहले कि बिछड़ जाएँ हम
वो दिल-नवाज़ है लेकिन नज़र-शनास नहीं
दफ़अ'तन दिल में किसी याद ने ली अंगड़ाई
तुझ बिन घर कितना सूना था
तिरे फ़िराक़ की रातें कभी न भूलेंगी
शहर सुनसान है किधर जाएँ
ओ मेरे मसरूफ़ ख़ुदा