बुलाऊँगा न मिलूँगा न ख़त लिखूँगा तुझे
तिरी ख़ुशी के लिए ख़ुद को ये सज़ा दूँगा
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रह-नवर्द-ए-बयाबान-ए-ग़म सब्र कर सब्र कर
गली गली मिरी याद बिछी है प्यारे रस्ता देख के चल
'नासिर' क्या कहता फिरता है कुछ न सुनो तो बेहतर है
इस से पहले कि बिछड़ जाएँ हम
तेरी मजबूरियाँ दुरुस्त मगर
मैं सोते सोते कई बार चौंक चौंक पड़ा
अपनी धुन में रहता हूँ
यूँ तो हर शख़्स अकेला है भरी दुनिया में
ज़रा सी बात सही तेरा याद आ जाना
आज तो बे-सबब उदास है जी
तनाब-ए-ख़ेमा-ए-गुल थाम 'नासिर'
पल पल काँटा सा चुभता था