रह-नवर्द-ए-बयाबान-ए-ग़म सब्र कर सब्र कर
कारवाँ फिर मिलेंगे बहम सब्र कर सब्र कर
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फिर सावन रुत की पवन चली तुम याद आए
जुर्म-ए-उम्मीद की सज़ा ही दे
नए कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ और बाल बनाऊँ किस के लिए
शोर बरपा है ख़ाना-ए-दिल में
कुछ यादगार-ए-शहर-ए-सितमगर ही ले चलें
तुझ बिन सारी उम्र गुज़ारी
मुझ को और कहीं जाना था
गिरफ़्ता-दिल हैं बहुत आज तेरे दीवाने
वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का
थोड़ी देर को जी बहला था
ग़म है या ख़ुशी है तू
इस शहर-ए-बे-चराग़ में जाएगी तू कहाँ