ज़रा सी बात सही तेरा याद आ जाना
ज़रा सी बात बहुत देर तक रुलाती थी
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हाल-ए-दिल हम भी सुनाते लेकिन
आज देखा है तुझ को देर के बअ'द
तन्हाइयाँ तुम्हारा पता पूछती रहीं
ये भी क्या शाम-ए-मुलाक़ात आई
तनाब-ए-ख़ेमा-ए-गुल थाम 'नासिर'
सुनाता है कोई भोली कहानी
न मिला कर उदास लोगों से
गली गली मिरी याद बिछी है प्यारे रस्ता देख के चल
होती है तेरे नाम से वहशत कभी कभी
वो साहिलों पे गाने वाले क्या हुए
वो दिल-नवाज़ है लेकिन नज़र-शनास नहीं
इन सहमे हुए शहरों की फ़ज़ा कुछ कहती है