ज़िंदगी जिन के तसव्वुर से जिला पाती थी
हाए क्या लोग थे जो दाम-ए-अजल में आए
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याद आई वो पहली बारिश
कुंज कुंज नग़्मा-ज़न बसंत आ गई
दिन ढला रात फिर आ गई सो रहो सो रहो
नई दुनिया के हंगामों में 'नासिर'
सफ़र-ए-मंज़िल-ए-शब याद नहीं
ये शब ये ख़याल-ओ-ख़्वाब तेरे
याद आता है रोज़ ओ शब कोई
भरी दुनिया में जी नहीं लगता
ज़बाँ सुख़न को सुख़न बाँकपन को तरसेगा
मैं हूँ रात का एक बजा है
कुछ यादगार-ए-शहर-ए-सितमगर ही ले चलें
आराइश-ए-ख़याल भी हो दिल-कुशा भी हो