वो दिल-नवाज़ है लेकिन नज़र-शनास नहीं
मिरा इलाज मिरे चारा-गर के पास नहीं
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चुप चुप क्यूँ रहते हो 'नासिर'
भरी दुनिया में जी नहीं लगता
शोर बरपा है ख़ाना-ए-दिल में
शहर सुनसान है किधर जाएँ
इस क़दर रोया हूँ तेरी याद में
न अब वो यादों का चढ़ता दरिया न फ़ुर्सतों की उदास बरखा
कहते हैं ग़ज़ल क़ाफ़िया-पैमाई है 'नासिर'
दफ़अ'तन दिल में किसी याद ने ली अंगड़ाई
हँसता पानी रोता पानी
जब रात गए तिरी याद आई सौ तरह से जी को बहलाया
ज़िंदगी जिन के तसव्वुर से जिला पाती थी
ग़म है या ख़ुशी है तू