इस क़दर रोया हूँ तेरी याद में
आईने आँखों के धुँदले हो गए
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दुख की लहर ने छेड़ा होगा
दिल में और तो क्या रक्खा है
तन्हाइयाँ तुम्हारा पता पूछती रहीं
रात कितनी गुज़र गई लेकिन
उस ने मंज़िल पे ला के छोड़ दिया
ओ मेरे मसरूफ़ ख़ुदा
फिर सावन रुत की पवन चली तुम याद आए
अपनी धुन में रहता हूँ
हँसता पानी रोता पानी
ये सितम और कि हम फूल कहें ख़ारों को
तिरे आने का धोका सा रहा है
आराइश-ए-ख़याल भी हो दिल-कुशा भी हो