वक़्त अच्छा भी आएगा 'नासिर'
ग़म न कर ज़िंदगी पड़ी है अभी
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न अब वो यादों का चढ़ता दरिया न फ़ुर्सतों की उदास बरखा
दौर-ए-फ़लक जब दोहराता है मौसम-ए-गुल की रातों को
सारा दिन तपते सूरज की गर्मी में जलते रहे
जब रात गए तिरी याद आई सौ तरह से जी को बहलाया
मुझे तो ख़ैर वतन छोड़ कर अमाँ न मिली
दयार-ए-दिल की रात में चराग़ सा जला गया
मुमकिन नहीं मता-ए-सुख़न मुझ से छीन ले
अपनी धुन में रहता हूँ
कम-फ़ुर्सती-ए-ख़्वाब-ए-तरब याद रहेगी
हमारे घर की दीवारों पे 'नासिर'
वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का
दिल तो मेरा उदास है 'नासिर'