दिन भर तो मैं दुनिया के धंदों में खोया रहा
जब दीवारों से धूप ढली तुम याद आए
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वो रात का बे-नवा मुसाफ़िर वो तेरा शाइर वो तेरा 'नासिर'
'नासिर' क्या कहता फिरता है कुछ न सुनो तो बेहतर है
अपनी धुन में रहता हूँ
शोर बरपा है ख़ाना-ए-दिल में
किसी कली ने भी देखा न आँख भर के मुझे
बुलाऊँगा न मिलूँगा न ख़त लिखूँगा तुझे
यूँ किस तरह कटेगा कड़ी धूप का सफ़र
ज़बाँ सुख़न को सुख़न बाँकपन को तरसेगा
रह-नवर्द-ए-बयाबान-ए-ग़म सब्र कर सब्र कर
दिल में और तो क्या रक्खा है
दाएम आबाद रहेगी दुनिया
हँसता पानी रोता पानी