तू ने तारों से शब की माँग भरी
मुझ को इक अश्क-ए-सुब्ह-गाही दे
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रह-नवर्द-ए-बयाबान-ए-ग़म सब्र कर सब्र कर
नए कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ और बाल बनाऊँ किस के लिए
वो दिल-नवाज़ है लेकिन नज़र-शनास नहीं
शोर बरपा है ख़ाना-ए-दिल में
वक़्त अच्छा भी आएगा 'नासिर'
गए दिनों का सुराग़ ले कर किधर से आया किधर गया वो
उस ने मंज़िल पे ला के छोड़ दिया
कुछ तो एहसास-ए-ज़ियाँ था पहले
यूँ तो हर शख़्स अकेला है भरी दुनिया में
ये रात तुम्हारी है चमकते रहो तारो
गिरफ़्ता-दिल हैं बहुत आज तेरे दीवाने
चुप चुप क्यूँ रहते हो 'नासिर'